क्या हिंदू-मुस्लिम विवाद वास्तविक में है या फ़िर हमारी राजनीति ने उसको विवादित बना दिया है? कभी लगता है कि हर बुरे के लिए सरकार को दोष देना सही नहीं होता है। कुछ न कुछ तो ग़लती हम नागरिकों की भी रहती होगी. पुराने विवादों को न देख कर यदि अभी अमरनाथ विवाद की तरफ़ निगाह डालें तो पता चलेगा कि यहाँ सारी गलती सरकार की नहीं है. हिंदू धर्म के लिए कुछ जमीन यदि दे दी गई तो क्या इतना बड़ा अपराध हो गया कि सरे शहर में दंगा कर दिया जाए. फ़िर कहा जाता है कि हिंदू सांप्रदायिक है. यहाँ किसने दिखाई साम्प्रदायिकता?
यदि इसी के ठीक उलट देखा जाए तो कहा जाता है कि हम सबको प्रेम-भाव से रहना चाहिए। ऐसे किस तरह प्रेम-भाव बनेगा ये समझ से परे है? एक तरफ़ मुस्लिम संप्रदाय को हज के लिए हर तरह की सुविधा दी जाती है, थोडी सी कमी भी सरकार को ऊपर से निचे तक परेशां कर देती है. हज कमिटी, अल्प संख्यक आयोग और मुस्लिम वोट-बैंक से जुड़े लोग किसी न किसी रूप में उनको हर मदद दिलाने को दिलो-जान से लग जाते हैं। यहाँ अमरनाथ यात्रा के लिए हिन्दुओं को थोडी सी जमीं दे दी गई तो दंगे की स्थिति हो गई. वह रे भाईचारा! वाह रे हमारा प्रेम-भाव! वाह रे हमारी धर्मनिरपेक्षता!
चलो इस बार फ़िर एक बात तो सिद्ध हो गई कि हिन्दुओं को अपने देश में ही भेदभाव सह कर जीना होगा. देखना होगा कहीं कल को हमें अपने आराध्य राम, हनुमान, कृष्ण, विष्णु, सीता, दुर्गा, लक्ष्मी आदि देवी-देवताओं की पूजा करने का विरोध न सहना पड़े?