Tuesday, July 8, 2008

रग-रग में था देश पर मर मिटने का जज्बा




पठानकोट [राज चौधरी/बाबा मेहरा/नरोट जैमल सिंह]। उसकी रग-रग में शुरू से ही देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा था, इसलिए उसने इंडो-तिब्बत बार्डर पुलिस [आईटीबीपी] ज्वाइन किया। घरवालों के विरोध के बावजूद देश की सेवा के लिए अफगानिस्तान गया और आज वहां दहशतगर्दो के खूनी खेल में देश के काम आ गया।

जांबाज अजय सिंह पठानिया के शहीद होने की खबर जैसे ही मिली, उसके पैतृक गांव कांनवा में शोक की लहर छा गई। पत्नी को यकीन नहीं हो रहा कि अजय अब इस दुनिया में नहीं है, तो पांच साल का बेटा अनिकेत अभी भी खिलौनों के साथ अपने पापा का इंतजार कर रहा है। जनवरी के अंत में अफगानिस्तान गए अजय की दो संतानों में एक दो माह की बेटी है, जिसका मुंह देखना भी अजय को नसीब न हुआ। 35 वर्षीय अजय की शादी छह साल पहले पूनम से हुई थी।

शहीद के भाई विजय सिंह पठानिया ने बताया कि कठुआ में रहने वाले उनके बहनोई ने फोन पर अफगानिस्तान में हुए बम विस्फोट की घटना की जानकारी दी। इसके बाद उन्होंने अजय सिंह के मोबाइल पर संपर्क किया, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। उन्होंने दोपहर करीब 12 बजे आईटीबीपी के हेडक्वार्टर संपर्क किया। पहले तो वहां से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला, लेकिन करीब दो बजे वहां से फोन आया, जिसमें अजय की शहादत की पुष्टि की गई। बचपन से ही देश की सेवा करने का सपना देखने वाले अजय के पिता हरदास सिंह भी फौज में थे। सरकारी स्कूल परमानंद में दसवीं करने के बाद अजय ने आर्य सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं की परीक्षा पास की। इसी बीच वह अपने रिश्तेदार से मिलने जालंधर पहुंचा और वहां चल रही आईटीबीपी की भर्ती में शामिल हो गया। मेहनती व योग्य होने के कारण उसका चयन भी कर लिया गया। अपनी 13 साल की नौकरी के दौरान अफगानिस्तान जाने से पूर्व वह देश के नार्थ ईस्ट में तैनात था। फरवरी में उसे अफगानिस्तान भेजा गया। वहां जाने से पहले जनवरी के अंत में वह अपने परिजनों से मिला था।

विजय ने बताया कि उनका परिवार अजय को अफगानिस्तान जाने देने के पक्ष में नहीं था, लेकिन अजय की जिद के आगे सबको झुकना पड़ा। शुक्रवार को ही उसने परिजनों से वादा किया था कि वह शीघ्र घर लौटेगा, लेकिन होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था।

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