Wednesday, July 2, 2008

भगीरथ की प्रतीक्षा में गंगा



विश्व के प्राचीनतम ज्ञान संकलन ऋग्वेद में गंगा सहित अनेक नदियों से राष्ट्रकल्याण की प्रार्थना है। गंगा भारत की पहचान है, आस्था और संस्कृति है। मृत्यु के समय दो बूंद गंगाजल की अभीप्सा सनातन है। गंगा राष्ट्र जीवन का स्पंदन है। देश की 37 प्रतिशत जनसंख्या गंगातट वासी है। इस तट पर 114 से ज्यादा बड़े नगर हैं। देश का लगभग 45 प्रतिशत सिंचित क्षेत्रफल गंगा बेसिन में है। गंगा के अभाव में समृद्ध सांस्कृतिक भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। गंगा पर पूरे भारत का अधिकार है। अमेरिका, यूरोप आदि में रहने वाले भरतवंशियों का भी गंगा पर अधिकार है, लेकिन यही गंगा मुनाफाखोर विदेशी औद्योगिक संस्कृति के चलते सिर्फ बिजली बनाने के नाम पर रोक दी गई है। ऊपरी गंगा क्षेत्र में गंगोत्री से 14 किमी दूर गंगा विरोधी परियोजनाएं चल रही हैं। गंगा को रोककर सुरंगों में भेजा जा रहा है। भैरोघाटी से सुरंगों का सिलसिला है। भैरोघाटी प्रथम व द्वितीय पर काम शुरू होना है। 600 मेगावाट की लोहारीनागपाला परियोजना पर काम जारी है। 480 मेगावाट की पालामनेरी निर्माणाधीन है। मनेरीभाली द्वितीय पूरी हो चुकी है। मनेरीभाली प्रथम के कारण स्थानीय जल स्त्रोत भी सूख गए। गंगा का अस्तित्व खतरे में है। हमारे पूर्वजों ने गंगा को मां कहा। गंगातट तीर्थ बने, स्नान, योग और ध्यान के पीठ बने। भारत के मन ने धरती की गंगा को आकाश में भी बहाने का कौशल निभाया। कृष्ण ने अर्जुन को बताया, ''पार्थ, तारों में आकाश गंगा मैं ही हूं।'' धरती की नदियों को आकाश में बहाने का शिल्प भारत का ही प्रज्ञा चमत्कार है। यूनानियों ने भी देखा देखी 'ओक अनास' नाम की नदी को आकाश में बहाने का प्रतीक गढ़ा। हालांकि यूनान में इस नाम की कोई नदी नहीं थी। भारतीय पूर्वजों का उद्देश्य गंगा की महत्ता ही बताना था।

भारत के मन में प्रतिपल गंगा का बहाव है। गंगा से जुड़ा एक विशाल अर्थतंत्र है। तीर्थ हैं, तीर्थो से जुड़े व्यापारी और पुजारी हैं, मछुआरे हैं। गंगा से निकलने वाली नहरें हैं। एक विपुल क्षेत्र की सिंचाई का साधन है। यह वर्षा ऋतु की नदी नहीं है, बारह मास हिमखंडों से बहती है, ढेर सारी नदियों को आत्मसात करती है। गंगा भारत का काव्य है, अध्यात्म है, अ‌र्ध्य है, आचमन, पूजन, वंदन है। गंगा का प्रवाह अनहद नाद है। नील, टेम्स या डेन्यूब के उद्गम स्थलों का दर्शन करने कोई नहीं जाता, लेकिन गोमुख का दर्शन भारत में परम लब्धि है। अब तक ऋषिकेश और हरिद्वार तक गंगा जल शुद्ध था, अब गढ़मुक्तेश्वर तक की यात्रा में इसकी हताशा है, लेकिन कुमाऊं रुहेलखंड, मुरादाबाद, बरेली, शाहजहांपुर, हरदोई पार करते गंगा में औद्योगिक कचरे का घोल बढ़ता जाता है। रुड़की, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर और फर्रुखाबाद के क्षेत्र गंगा में अपना कचरा मिलाते हैं। फिर कानपुर का कचरा मिलता है। यमुना हरियाणा, दिल्ली, आगरा और मथुरा से कचरा लाती है और इलाहाबाद में गंगा में मिला देती है। गंगा को उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड से लगभग 33 प्रतिशत, बंगाल से कोई 27 प्रतिशत और बिहार से 20 प्रतिशत क्षति पहुंच रही है। टिहरी सहित पहाड़ी क्षेत्रों की विद्युत परियोजनाओं और दिल्ली को पानी पहुंचाने की प्रस्तावित योजना से गंगा वध की तैयारियां पूरी हैं। गंगा का अविरल प्रवाह भारतीय राष्ट्रजीवन की मौलिक आवश्यकता है। 1916 में ब्रिटिश सरकार और मदन मोहन मालवीय के बीच गंगा के नैसर्गिक प्रवाह को यथावत बनाए रखने का समझौता हुआ था। अंग्रेजों ने समझौते का आदर किया, लेकिन स्वतंत्र भारत की सरकारों ने संस्कृति पर विकास का डंडा चला दिया। गंगा के अविरल प्रवाह पर टिहरी बांध के असर का अध्ययन करने के लिए केंद्र ने 2001 में मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में एक समिति बनाई। समिति ने अप्रैल 2001 से जनवरी 2002 के बीच 6 बैठकें कीं। समिति ने भी अविरल प्रवाह को जरूरी बताया। समिति ने अन्य उच्चस्तरीय विशेषज्ञ अध्ययनों की भी संस्तुतियां की थीं।

वैदिक काल से लेकर महाभारत और रामायण काल तक गंगाजल की महिमा है। गंगा पत्थर और रेत बहाकर प्रवाहित होती है। आयुर्वेद के प्रथम ग्रंथ चरक संहिता में पत्थर और रेत बहाने वाली नदियों के जल को औषधीय दृष्टि से भी अमृत बताया गया है। औद्योगिक सभ्यता के हमले के पूर्व गंगा का जल वर्षो रखे जाने तक भी नहीं सड़ता था। औद्योगिक दृष्टिकोण की वरीयता और गंगा से होने वाले समग्र राष्ट्रीय लाभ को दोयम मानने की सरकारी नीतियों के चलते उपयोगी सुझाव भी व्यर्थ हो गए। औद्योगिक सभ्यता ने जल को प्रदूषित किया है, वायु प्रदूषित है, ऋतु चक्र गड़बड़ा गया है, काल अकाल हो रहा है। सांस्कृतिक तत्व व्यथित हैं। गंगा अवसान की भविष्यवाणी पुराणकर्ताओं ने दो हजार बरस पहले कर दी थी। पूर्वज शोधरत थे। तब शोध का लक्ष्य मनुष्य जाति का कल्याण था। वे सृष्टि रचना के महत्वपूर्ण सूत्र खोज रहे थे। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश यों ही देवता और पंचमहाभूत नहीं बने। आधुनिक सभ्यता में शोध का लक्ष्य अधिकतम भोग और मुनाफा है। गंगा का अविरल प्रवाह देश, काल, सभ्यता, संस्कृति, आस्था और अर्थशास्त्र सहित सभी दृष्टियों का आह्वान है। बर्कले यूनिवर्सिटी के डिग्रीधारी जीडी अग्रवाल ने इसी राष्ट्रीय प्रश्न पर आमरण अनशन का निश्चय किया है। 'जल बिरादरी' के संयोजक राजेन्द्र सिंह, राष्ट्रवादी चिंतक गोविंदाचार्य, समाजसेवी सुनीता नारायण, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अनुपम मिश्र, पर्यावरण मामलों के अधिवक्ता एमसी मेहता सहित सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ता उनके समर्थन में उतर आए हैं। राजनीति मौन है। आश्चर्य है कि संसदीय व्यवस्था भी इस प्रश्न पर कोई सारवान ध्यानाकर्षण नहीं कर पाई। विश्व व्यापार संगठन प्रायोजित औद्योगिक घरानों से निर्देशित सरकारी तंत्र को जगाने के लिए जनांदोलन ही एकमात्र विकल्प है। कुछ नि:स्वार्थी लोग आगे आए हैं। प्रत्येक गंगा भक्त के सामने भगीरथ बन जाने का अमृत अवसर है



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