Sunday, July 6, 2008

गोकुल बना एक गांव


वर्ष 1970 में भारत ने किसानों की बेहतरी के लिए एक सपना देखा, श्वेत क्रांति का सपना। यानी दुग्ध उत्पादन के जरिए गांवों की आर्थिक आजादी। शुरुआत हुई गुजरात के आणंद से। हरियाणा और पंजाब भी इसी राह पर आगे बढ़े। लेकिन चंद उदाहरण छोड़ दें, तो यूपी के किसान श्वेत क्रांति से नहीं जुड़े। अलबत्ता अमेठी के कौहार गांव के बोधे ने इस सपने को समझा। वह आगे बढ़े तो और भी परिवार साथ हो लिए। कारवां बनता गया और आज कौहार गांव में दूध का दरिया बहता है। लोग इसे अब 'गोकुल' नाम से पुकारने लगे हैं।

गौरीगंज क्षेत्र के शाहगढ़ ब्लाक में ब्राह्मण बहुल कौहार गांव ढाई साल पहले तक दरिद्र था। हालांकि कृष्णकांत तिवारी उर्फ बोधे कुछ अलग करने की ठान चुके थे। बोधे को एक दिन श्वेत क्रांति के बारे में जानकारी हाथ लगी। उन्होंने आणंद मिल्क यूनियन लिमिटेड [अमूल] के बारे में पढ़ा और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड से संपर्क साधा तो मालूम पड़ा कि समूह बनाकर काम करने पर कर्ज मिलना आसान है। इसी भरोसे पर बोधे ने स्वयं सहायता समूह बनाकर दिसंबर 2005 में स्वरोजगार के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक से तीन लाख रुपये कर्ज मांगा। पहली किस्त में डेढ़ लाख रुपये मिलने पर सात भैंसें व दो गायें खरीदकर दूध बेचना शुरू किया। यह अहसास होने पर कि भैंस के मुकाबले गायों के राशन-पानी का इंतजाम करना सस्ता-सुलभ है, उन्होंने दूसरी किस्त मिलने पर एकमुश्त 20 गायें और खरीदीं। मुनाफा दिखा तो गायों की संख्या 50 पहुंचने में वक्त नहीं लगा। बोधे के इस कारोबार में और भी साथियों के हाथ मिले। बोधे की तरक्की देखकर गांव के शेरबहादुर, पवन, भगौती, रामानंद तथा अन्य परिवारों ने भी गो पालन शुरू कर दिया। देखते-देखते कई दरिद्र परिवारों के दिन बदले। 25 परिवारों वाले इस गांव में अब 150 गायें हैं। आज कौहार गांव रोज प्रादेशिक कोआपरेटिव फेडरेशन को पांच सौ लीटर से ज्यादा दूध बेचता है। गायों के जरिए कौहार गांव की किस्मत बदली, दरिद्रता दूर हुई है। ग्वाले भी गायों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ते। कोई गाय गौरी है, कोई गंगा, कोई लक्ष्मी तो कोई नंदिनी। चांदनी, परमेश्वरी और पुरखिनिया भी मिल जाएंगी। गायों की सुबह मालिश होती है। गौशाला को सुबह-शाम धोया जाता है। बकौल बोधे सालाना बीस हजार रुपये की खाद बिक जाती है। गायों की सेवा में जुटीं निर्मला तिवारी कहती हैं कि गायों ने हमारी जिंदगी बदल दी। राम संजीवन अपनी गायों को एटीएम कार्ड कहते है। तरक्की की कहानी सुनकर आसपास के लोग तथा जिले के अधिकारी कौहार गांव देखने-सुनने आते हैं।


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