Wednesday, July 2, 2008
खतरे में आंतरिक सुरक्षा
उड़ीसा के मलकानगिरि जिले में ग्रेहाउंड जवानों पर नक्सलियों का हमला और असम के निचले इलाके में बम विस्फोट दो अलग-अलग घटनाएं अवश्य हैं, लेकिन इन दोनों ही घटनाओं से आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बने तत्वों के बढ़ते दुस्साहस का पता चलता है। मलकानगिरी में पुलिस कर्मियों पर नक्सलियों का हमला इसलिए कहीं अधिक गंभीर चिंता का विषय बनना चाहिए, क्योंकि नक्सली संगठनों ने कमांडो जवानों को अपना निशाना बनाया। बलिमेला जलाशय में 64 जवानों को ले जा रही नौका पर नक्सलियों का दुस्साहसी हमला एक तरह से उन जवानों का मनोबल तोड़ने का प्रयास है जो नक्सलवाद की चुनौती का सामना करने में लगे हुए हैं। इस हमले में 37 जवान लापता हैं और 24 घंटे से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी उनका सुराग नहीं लग सका है। यदि कोई अनहोनी होती है तो संभवत: यह एक और ऐसा बड़ा हादसा होगा जिसकी गंभीरता को समझने से इनकार किया जाएगा। यद्यपि नक्सली हमले में लापता जवानों की खोज में सेना और नौसेना के गोताखोर जुटे हैं, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि केंद्र सरकार पर इस घटना का अपेक्षित असर पड़ा है। यह सामान्य बात नहीं कि केंद्र सरकार ने तत्काल इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करना जरूरी नहीं समझा। देश के विभिन्न हिस्सों में आंतरिक सुरक्षा को दी जा रही चुनौती के संदर्भ में इधर एक नई प्रवृत्तिदेखने को मिल रही है कि जब तक कोई बड़ी घटना नहीं घटती तब तक केंद्र सरकार अपनी सक्रियता का परिचय नहीं देती। पिछले दिनों जब जयपुर में बम विस्फोट के बाद आंतरिक सुरक्षा का लेकर देश भर में चिंता की लहर थी तो केंद्रीय गृहमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक ने संघीय जांच एजेंसी की जरूरत पर बल दिया था, लेकिन इस संदर्भ में औपचारिक बयान देकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई। यह भी किसी से छिपा नहीं कि जब देश के दूर-दराज के हिस्सों में कोई घटना घटती है तो ज्यादा से ज्यादा यह होता है कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधि वहां का दौरा कर आते है। कभी-कभी तो इस औपचारिकता का भी परित्याग कर दिया जाता है। यही वे स्थितियां है जो नक्सलियों, अलगाववादियों और आतंकियों का दुस्साहस बढ़ा रही है।
विगत दिवस निचले असम के एक बाजार में जो बम विस्फोट हुआ उसमें छह लोग मारे गए और 80 से अधिक घायल हुए, लेकिन केंद्र सरकार के स्तर पर कहीं कोई सक्रियता नहीं दिखी। जहां तक राज्य सरकार की बात है, वह उल्फा उग्रवादियों की प्रत्येक वारदात के बाद उनके लिए बातचीत का दरवाजा खोल देती है। इस बार भी ऐसा ही किया गया। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने फिर यह दोहरा दिया कि उल्फा को बातचीत के लिए आगे आना चाहिए। उन्होंने उल्फा को यह निमंत्रण इस तथ्य से अवगत होने के बाद भी दिया कि यह अलगाववादी संगठन आईएसआई के हाथों में खेल रहा है। उल्फा उग्रवादियों को इस तरह का निमंत्रण देकर राज्य सरकार कुल मिलाकर अपनी कमजोरी का ही प्रदर्शन करती है। यही कारण है कि असम के विभिन्न हिस्सों में रह-रहकर बम विस्फोट होते ही रहते है। चूंकि उग्रवाद और अलगाववाद के खिलाफ केंद्र के ढुलमुल रवैये का असर राज्यों पर भी पड़ रहा है इसलिए आंतरिक सुरक्षा का भविष्य और अधिक खतरे में नजर आता है।