Tuesday, July 8, 2008
मृत्यु से घबराना नहीं चाहिए
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपा :
न चैव न भविष्याम : सर्वे वयम् अत : परम्।।12।।
ऐसा नहीं है कि मैं किसी समय नहीं था , अथवा तुम नहीं थे या ये राजा नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब लोग नहीं रहेंगे। (2.12)
देहिन : अस्मिन् यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिरे धीरस् तत्र न मुह्यति।।13।।
जैसे इसी जीवन में जीवात्मा बाल , युवा और वृद्ध शरीर प्राप्त करती है वैसे ही जीवात्मा मृत्यु के बाद दूसरा शरीर प्राप्त करती है। इसलिए धीर मनुष्य को मृत्यु से घबराना नहीं चाहिए। (2.13)
मात्रास्पर्शास् तु कौन्तैय शीतोष्णसुखदुखदा :
आगमापायिन : आनित्यास् तांस तितिक्षस्व भारत।।14।।
हे अर्जुन , इन्द्रियों के विषयों से संयोग के कारण होने वाले सर्दी-गर्मी और सुख-दुख क्षणभंगुर और अनित्य हैं , इसलिए हे अर्जुन , तुम उसको सहन करो।(2.14)